Sunday, June 19, 2016

Mehboob mere...

हाँ सोचा था मैंने की मैं भी महबूबा बनूँगी,
मैं भी उनके दिल में रहूँगी,
सोना चाँदी सब की चाहत थी,
बस सज कर तुम्हारी नज़र ए तारीफ़ की हसरत थी,
भूल गए हम की सोने के जैसे तराशा होता ख़ुद को तो धड़क भी रहे होते और सज भी रहे होते!

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